नई दिल्ली: बिजली सेक्टर की स्थिति में पिछले चार-पांच वर्षो में काफी सुधार के बावजूद तकनीकी या चोरी की वजह से होने वाली हानि पर अंकुश नहीं लग रहा है। चोरी समेत अन्य वजहों से वर्ष 2019-20 में कुल आपूर्ति की गई बिजली के करीब 21 फीसद की बिलिंग नहीं हो पाई और देश को 1.22 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। संसदीय समिति ने सरकार को एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लास (एटीएंडसी) पर काबू पाने के लिए अपनी कमर कसने को कहा है।

लोकसभा में सोमवार को संसदीय समिति की पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015-16 में एटीएंडसी से होने वाली हानि 23.7 फीसद थी जो घटकर वर्ष 2019-20 में 20.93 फीसद रही है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2024-25 में इसे घटाकर 12-15 फीसद पर लाने का लक्ष्य रखा है। समिति ने कहा है कि विकसित देशों में एटीएंडसी से होने वाली हानि की स्थिति को देखते हुए 15 फीसद का लक्ष्य काफी ज्यादा है।

समिति के अनुसार पांच राज्यों में इस हानि का स्तर 40 से 60 फीसद है, जो अधिक चिंता का विषय है। यह स्थिति तब है कि जब देश में बिजली क्षेत्र में तकनीक, वितरण या किसी भी वजह से होने वाली हानि पर काबू पाने के लिए वर्ष 2000-01 से ही कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

बता दें कि मौजूदा केंद्र सरकार एक्सीलरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफा‌र्म्स प्रोग्राम (एपीडीआरपी) चला रही है। केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार, एटीएंडसी से होने वाली हानि का स्तर घटकर 18.66 फीसद है। यानी दो वर्षो के दौरान इसमें तकरीबन दो फीसद की कमी हुई है। इस हिसाब से भी देखा जाए अगले तीन वर्षों में 12 व 15 फीसद के बीच में लाना मुश्किल लगता है।

उत्तर प्रदेश में अभी यह 28, बिहार में 34, मध्य प्रदेश में 24, झारखंड में 40 और जम्मू-कश्मीर में 62 फीसद है। यही वजह है कि समिति ने कहा है कि एटीएंडसी से होने वाली हानि को रोकना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है कि बिजली वितरण राज्यों के अधिकार का मामला है।

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