

3 सितंबर की रात जिले के लिए जिम्मेदारों के निष्क्रियता का काला अध्याय साबित हुआ यह हादसा, एक पूरा परिवार जल समाधि में समा गया
रायपुर/बलरामपुर।छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में लूती जलाशय की दीवार टूटने से हुआ हादसा न केवल एक त्रासदी है, बल्कि यह अफसरों की घोर लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। पांच लोगों की मौत और एक बच्चे सहित दो लोगों के लापता होने की इस घटना ने अफसरों और जल संसाधन विभाग की नाकामी को उजागर किया है। यह हादसा सिर्फ प्राकृतिक आपदा का नतीजा नहीं, बल्कि वर्षों की उपेक्षा, गैर जिम्मेदाराना रवैया और लचर व्यवस्था का परिणाम है।

जिला जब रेड अलर्ट में था तो बांध के नीचे के परिवारों को क्यों नहीं हटाया गया
जलाशय की जर्जर हालत और उसमें रिसाव की जानकारी ग्रामीणों द्वारा बार-बार दी गई थी, फिर भी जल संसाधन विभाग ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया 45 साल पुराने इस जलाशय की मरम्मत न करना और इसके नीचे बसे परिवारों को समय रहते नहीं हटाना अफसरों की गंभीर चूक है। रेड अलर्ट की चेतावनियां जारी करने और निगरानी का दावा करने वाले अफसर जमीनी स्तर पर कहां थे ? अधिकारियों का मंहगी वाहनों में दौरा करना और ऑफिस में बैठकर रिपोर्ट बनाना ही क्या पर्याप्त है ? यह हादसा बताता है कि चेतावनियां बेकार हैं, अगर उन पर अमल न हो।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नियमित निरीक्षण की कमी पर नाराजगी जताई
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नियमित निरीक्षण की कमी पर नाराजगी जताई, लेकिन सवाल यह है कि जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई कब होगी ? जांच और सस्पेंशन के नाम पर लीपापोती से एक बुझे हुए परिवार का चिराग वापस नहीं आएगा। यह समय है कि सरकार न केवल राहत और मुआवजे तक सीमित रहे, बल्कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ़ केस दर्ज कर कठोर कदम उठाए। डैम सेफ्टी एक्ट 2021 का पालन और पुराने बांधों की नियमित निगरानी सुनिश्चित करना अब अनिवार्य है। यह त्रासदी अफसरों के लिए एक सबक है कि कागजी कार्रवाई और दावों से ज्यादा जरूरी है जमीनी स्तर पर सक्रियता। अगर समय रहते कार्रवाई हुई होती तो शायद एक आदिवासी परिवार को इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ती । अफसरों को चाहिए कि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो, इसके लिए जवाबदेही तय की जाए और व्यवस्था में सुधार लाया जाए। यह हादसा न केवल दुखद है, बल्कि अफसरों की निष्क्रियता का काला अध्याय है।






















