बरसात से पहले किए गए राहत कार्य साबित हुए अस्थायी, गड्ढों पर डाली गई मिट्टी और गिट्टी शुरुआती बारिश में धुली, सड़कें फिर से जानलेवा

क्या चाय के टपरियों पे गुट बना कर विश्लेषण करने तक ही सीमित रह गई है जनप्रतिनिधियों की भूमिका?

आखिर जनहित के मुद्दों पर क्यों चुप्पी साधे हुए है जिम्मेदार ?

गड्ढों से दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या सड़क हादसों को ‘प्राकृतिक आपदा’ मानकर भूल जाना चाहिए?

क्यों जनहित के असली मुद्दों पर चुनी हुई सरकारें और जनप्रतिनिधि चुप्पी साध लेते हैं?

बलरामपुर/राजपुर। छत्तीसगढ़ में मानसून के सक्रिय होते ही जहां एक ओर गर्मी से राहत की उम्मीद थी, वहीं दूसरी ओर लगातार हो रही बारिश ने राष्ट्रीय राजमार्ग 343 की दुर्दशा उजागर कर दी है। इस मार्ग पर चलना अब जोखिमों से भर गया है।अंबिकापुर से पस्ता के तक अब गड्ढों के कारण सड़क कम और दलदल ज्यादा नजर आ रही है।  स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सड़क अब “गड्ढों में सड़क खोजने” की स्थिति में पहुंच चुकी है। काफी जोर आजमाइश और मशक्कत के बाद एन एच विभाग जागा भी था तो सिर्फ खानापूर्ति कर  बरसात की तैयारी पूरी कर ली गई। विभाग के द्वारा सड़कों के बड़े बड़े गड्ढों पर मिट्टी और क्रेशर डस्ट और गिट्टी डाल दिया गया जो शुरुआती बारिश में ही धूल गई, गुणवत्ता और दीर्घकालिक स्थायित्व को लेकर कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई थी जिससे सड़क गड्ढों में तब्दील हो गई। अब वाहन चालकों के द्वारा सड़क में गड्ढे नहीं गड्ढों में सड़क ढूंढी जा रही है।सड़क की इस बदहाल स्थिति को लेकर स्थानीय जनता और वाहन चालकों में भारी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि जब तक किसी बड़े जनप्रतिनिधि या अधिकारी के वाहन को नुकसान नहीं होता, तब तक विभाग कार्रवाई करने में रुचि नहीं दिखाता।

एनएच विभाग की बरसात की तैयारी शुरुआती बारिश में ही धुली

एनएच विभाग द्वारा सड़कों की मरम्मत और राहत कार्य के तहत किए गए कार्यों पर सवाल उठने लगे हैं। विभाग ने गड्ढों को भरने के लिए मिट्टी, क्रशर डस्ट और गिट्टी का प्रयोग तो कर लिया, लेकिन गुणवत्ता और दीर्घकालिक स्थायित्व को लेकर कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह खानापूर्ति मात्र है, क्योंकि यह अस्थायी उपाय शुरुआती बारिश में ही बह गई और  इससे जहां सड़कें फिर से खराब हो गई।दोपहिया चालकों ने बताया किर बारिश में सड़क फिसलनभरी हो गई है और बड़े बड़े गड्ढों के वजह से रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल हो चुका है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई है और उनके जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वहीं कुछ लोगों ने विभाग की इस कार्यप्रणाली को ‘कागजी मरम्मत’ बताया है।

नेता, मंत्री, विधायक, अधिकारी, कर्मचारी गुजरते है इसी सड़क पर, क्या उनको आम जनता पे दया नहीं आती?

अंबिकापुर से रामानुजंगज तक सड़क पर मंत्री, विधायक, अफसर व विभाग के अधिकारी-कर्मचारी महंगे लक्जरी गाड़ियों में चलते है इसलिए उन्हें जर्क का एहसास नहीं होता। बारिश होने के कारण सड़क गड्ढों में तब्दील हो गई है। एनएच 343 अंबिकापुर रामानुजगंज नाका से रामाजुनगंज तक पेंच रिपेयरिंग कार्य ठेकेदारों के द्वारा निम्नस्तर का कराया गया था। पेंच रिपेयरिंग सड़क बनते के साथ उखंडना चालू हो गया था आज सड़क बड़े-बड़े गड्डों में तब्दील हो गई है।

गागर और गेउर नदी पुलिया जर्जर, नहीं है रेलिंग, कभी भी घट सकती है अप्रिय घटना

गागर और गेउर नदी का पुलिया काफी पुराना और जर्जर हो चुका हैं,  बड़े बड़े गड्ढों से अवागमन तो मुश्किल हुआ ही है साथ ही पुलिया में रेलिंग आधी टूट पड़ी है, रेलिंग नहीं होने के कारण कभी भी अप्रिय घटना घट सकती है। एक तो बड़े बड़े गड्ढे ऊपर से धुल और अंधेरे से दुर्घटनाओं की संभावनाएं बढ़ जाती है। स्थानीय नागरिकों और राहगीरों को प्रतिदिन जान हथेली पर रखकर गुजरना पड़ रहा है।

अंबिकापुर शंकरघाट से पस्ता और बलरामपुर से रामानुजगंज तक सड़क हुआ गड्ढों में तब्दील

अंबिकापुर शंकरघाट से पस्ता, बलरामपुर से रामानुजगंज तक, राजपुर गेउर नदी किनारे, झींगों से भेड़ाघाट, परसागुड़ी, परसा से शंकरघाट तक सड़क गड्ढों में तब्दील हो गई है। वाहनों के चक्के गड्ढे में घुस रहे है जिससे आए दिन सड़क दुर्घटनाएं हो रही है साथ ही वाहनों में भी टूट फूट के कारण नुकसान हो रहा है। इसके जिम्मेदार कौन हैं प्रशासन या एनएच विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, विभाग के अधिकारी-कर्मचारी शांत बैठ मौत के आंकड़े गिन रहे है।

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