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नई दिल्‍ली, एजेंसी। स्‍वस्‍थ मां और स्‍वस्‍थ शिशु की संकल्‍पना की यह तीसरी कड़ी है। गांव व शहर के विकास के ढांचे में अंतर के साथ दोनों ही क्षेत्रों में यानी स्‍वस्‍थ मां और स्‍वस्‍थ शिशु की संकल्‍पना में भी एक बड़ा अंतर है। ग्रामीण भारत में इस लक्ष्‍य को हासिल करना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, देश के मातृ मृत्‍यु अनुपात में 10 अंक की गिरावट है, लेकिन क्‍या इसका लाभ गांव के दूर-दराज इलाकों तक परिवारों को मिल रहा है। यह समीक्षा का व‍िषय है। यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह अंतर क्‍यों है। इस दिशा में गांव में केंद्र सरकार की कई योजनाए चल रही हैं, इसके बावजूद इस क्षेत्र में आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आ सके हैं। आखिर आशा कार्यकताओं के चलते देश को एक बड़ी उम्‍मीद क्‍यों जगी है? इस लक्ष्‍य को हालिस करने में उनकी क्‍या बड़ी भूमिका हो सकती है। आइए जानते हैं इन सारे मामलों में विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

मोदी का स्‍वच्‍छता अभियान इस दिशा में कारगर: डा सची

01- डा. सची सिंह  (प्रसूति विज्ञानी एवं स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ, प्रकाश हास्पिटल, नोएडा ) ने कहा कि नवजात शिशु मृत्‍यु दर को कम करने के लिए गांव व शहरी क्षेत्र दोनों जगहों पर प्रभावी उपायों की जरूरत है। इसके लिए प्रसव के दौरान व उसके तुरंत बाद माता और नवजात शिशु की देखभाल और नवजात की जन्‍म के बाद शुरुआती सप्‍ताहों में की जाने वाली देखभाल काफी अहम है। डा सची ने कहा कि यह जरूरी है कि प्रसव के दौरान स्‍वच्‍छता पर व‍िशेष ध्‍यान दिया जाए। मोदी सरकार के स्‍वच्‍छता अभियान को इसी समग्रता के साथ देखा जाना चाहिए। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह अभियान बेहद सार्थक रहा। इसके चलते लोगों में जागरूकता आई है। यह एक बेहतरीन पहल है।

02- डा. सची ने कहा कि कई शोध यह दिखाते हैं कि देश में खासकर गांवों में शिशु मृत्यु की एक बड़ी वजह प्री मैच्योरिटी यानि समय से पहले बच्चे की डिलिवरी है। उन्‍होंने कहा कि इसकी दूसरी वजह महिला को प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी और तीसरी वजह संक्रमण है। बड़े बच्चों में निमोनिया और दस्त रोग मृत्यु की बड़ी वजह बनते हैं। इन तीनों क्षेत्रों पर प्रभावी तरीकों को अपनाने की जरूरत है। इसके साथ महिलाओं में जागरूकता के स्‍तर को बढ़ाए जाने की जरूरत है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसे एक अभियान के साथ किया जाना चाहिए। तभी केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ सभी माताओं को मिल सकेगा।

03- इसके अलावा प्रसव के समय एक कुशल चिकित्‍सक और आपातकालीन प्रसव के दौरान बेहतर चिकित्‍सा सुव‍िधा की उपलब्‍धता भी अनिवार्य हो। उन्‍होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता का बड़ा अभाव है। इसके चलते गर्भवती महिलाओं को समय-समय पर लगने वाले टीके और पोषण की जानकारी नहीं हो पाती है। यही कारण है कि गांव में गर्भावस्‍था के दौरान महिलाएं टीटनेस टाक्‍साइड के टीके से वंचित रह जाती हैं। उनको इससे होने वाले लाभ की जानकारी नहीं रहती, जिसके चलते वह इसके प्रति उदासीन रहती हैं। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं के लिए एनीमिया और रक्‍तचाप का भी समय-समय पर जांच और उपचार का उचित प्रबंधन चाहिए। गांव में गरीबी और शिक्षा के अभाव के कारण यह काफी जटिल हो जाता है।

गांव व शहरी क्षेत्रों में एक बड़ा गैप: डा उपासना सिंह

01- डा उपासना सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता, अखिल भारतीय महिला परिषद की ग्रेटर नोएडा की अध्‍यक्ष) शिशु एवं बाल मृत्‍यु दर और मातृ मृत्‍यु दर के मामले में गांव व शहरी क्षेत्रों में एक बड़ा गैप देखने को मिला है। इसकी बड़ी वजह है। गांव और शहरी क्षेत्रों में स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में अंतर है। इसके साथ शिक्षा के प्रसार व उसकी गुणवत्‍ता में भी बड़ा अनुपात है। उन्‍होंने कहा कि शिशु एवं बाल मृत्‍यु दर में कमी लाना राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के सर्वप्रमुख उद्देश्‍यों में से एक है। उन्‍होंने कहा कि यह एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण अंचल में शिशु मृत्‍यु दर में और अधिक कमी लाना तभी संभव हो सकता है, जब नवजात शिशुओं के लिए स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं और अधिक उपलब्‍ध कराई जाए।

02- राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन (एनआरएचएम) के तहत ग्रामीण क्षेत्र में स्‍वास्‍थ्‍य ढांचे को मजबूत किया जा रहा है। देश के अधिकतर हिस्‍सों में प्रत्‍येक गांव में एक शिक्षित आशा की मौजूदगी, कई क्षेत्रों में एएनएम की तैनाती की गई है। इसके साथ मासिक ग्राम स्‍वास्‍थ्‍य एवं पोषण दिवसों के आयोजन से भारत में शिशु नवजात एवं बाल स्‍वास्‍थ्‍य में गुणात्‍मक सुधार आया है। उन्‍होंने कहा कि भारत में आशा कार्यकर्ता एक उम्‍मीद है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए। राज्‍यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आशा कार्यकर्ताओं को समुचित रूप से प्रशिक्षित किया जाए। इसकी बड़ी वजह है। आशा कार्यकताओं द्वारा उपलब्‍ध कराई जाने वाली सेवाएं ही रणनीति का केंद्रबिंदु हैं।

03- उन्‍होंने बाल विवाह पर ध्‍यान केंद्रीत करते हुए कहा कि केंद्र व प्रदेश की सरकारों को इस दिशा में जरूर सोचना चाहिए। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि इसके लिए कानून तो है पर इसके अमल में लापरवाही है। उन्‍होंने कहा कि हालांकि देश के अधिकांश हिस्‍सों में बाल विवाह का रिवाज खत्‍म हो गया है, लेकिन अभी भी एक बड़े क्षेत्र में यह प्रथा लागू है। बाल विवाह जैसी प्रथा का भी स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर हो रहा है। इसके अलावा आउटरीच स्वास्थ्य सेवाएं यानि घर तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के मामले में भी सरकार को और बेहतर करने की जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग का ध्यान हास्पिटल में प्रसव की तरफ तो है पर अस्पताल की सुविधाएं कई स्थानों पर अब भी लचर ही है। पोषण आहार के मामले में भी सरकार को पैनी नजर रखनी होगी।

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