

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार को राज्यसभा में वंदे मातरम पर विशेष चर्चा की शुरुआत हुई। चर्चा की शुरुआत करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि देश की आजादी, राष्ट्रीय चेतना और मां भारती के प्रति समर्पण का एक शक्तिशाली मंत्र है।
“वंदे मातरम” भारत के गौरव, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा है
गृह मंत्री ने कहा कि इस विषय को किसी राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह भारत के गौरव, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा है। अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसा उत्साह और जोश भरा कि यह नारा पूरे देश में आजादी का उद्घोष बन गया।
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग इस चर्चा पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि उन्हें समझना चाहिए कि वंदे मातरम पर चर्चा हमारे राष्ट्र के इतिहास और उसके आदर्शों को स्मरण करने का अवसर है।
यह गीत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना स्वतंत्रता संग्राम के समय था
अमित शाह ने कहा कि यह गीत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना स्वतंत्रता संग्राम के समय था, और जब 2047 में भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा होगा, तब भी वंदे मातरम की भावना उतनी ही दृढ़ बनी रहेगी।
सदन में बताया गया कि 7 नवंबर 1875 को बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की अमर रचना वंदे मातरम पहली बार सार्वजनिक हुई थी। प्रारंभ में इसे एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति माना गया, लेकिन धीरे-धीरे यह देशभक्ति का शाश्वत प्रतीक बनकर स्वतंत्रता आंदोलन की पहचान बन गई।
बंकिमचंद्र की इस रचना ने देश को चेतना, साहस और नई ऊर्जा दी
गृह मंत्री ने कहा कि बंकिमचंद्र की इस रचना ने देश को चेतना, साहस और नई ऊर्जा दी। उन्होंने कहा, “वंदे मातरम ने देश को जागरूक किया, युवाओं को प्रेरित किया और अनेक क्रांतिकारियों के लिए यह अंतिम मंत्र बना, जिसने उन्हें अगले जन्म में भी इसी भारत भूमि पर जन्म लेने की प्रेरणा दी।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि वंदे मातरम को बंगाल चुनाव से जोड़कर देखना गलत है। यह गीत केवल बंगाल का नहीं, बल्कि पूरे देश की धड़कन है और वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान है।
“वंदे मातरम” स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि की आजादी के लिए एक पवित्र संघर्ष का प्रतीक
इससे पहले सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम पर चर्चा की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा था कि यह केवल एक गीत या राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि की आजादी के लिए एक पवित्र संघर्ष का प्रतीक था।





















