गयाजी:  पितरों के उद्धार और श्राद्ध कर्म के लिए देशभर में कई तीर्थस्थल हैं, लेकिन बिहार का गयाजी हमेशा से ही मोक्षस्थली के रूप में पूजनीय रहा है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही प्रमुख वजह है कि पितृ पक्ष के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु गयाजी आते हैं। इन सबसे अलग, गयाजी की एक और खास बात है, जो लोगों का ध्यान खींच रही है। वह यह है कि यहां व्यक्ति अपना पिंडदान खुद भी कर सकता है। गयाजी के पावन स्थल होने के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में गयाजी का विशेष स्थान बताया गया है और पारंपरिक धारणा यह है कि यहां किए गए श्राद्ध से पितर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं। गयाजी में भस्मकूट पर्वत पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंगलागौरी मंदिर से जुड़े परिवार के सदस्य प्रीतम गिरी ने बताया कि उनके पूर्वज माधवगिरी दंडी स्वामी ने 1350 इस्वी में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

प्रीतम गिरी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से खास बातचीत में बताया कि बिहार के गयाजी में भस्मकूट पर्वत पर स्थित मां मंगलागौरी मंदिर के पास जनार्दन भगवान का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण मंदिर है, जहां आत्मस्वयं पिंडदान की परंपरा प्रचलित है। प्रीतम गिरी ने कहा कि गयाजी में पितृपक्ष चल रहा है और यहां विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं। मंगलागौरी मंदिर के पास ही जनार्दन स्वामी का मंदिर है और यहां आत्मस्वयं पिंडदान की जाती है। इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति के आगे-पीछे किसी और के होने की आवश्यकता नहीं। यदि आपको चिंता है कि आपकी मृत्यु के बाद आपके संतान या परिवार के लोग पिंडदान नहीं करेंगे, तो आप जीवित रहते ही अपने लिए पिंडदान कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपाय कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था उन लोगों के लिए है, जिनका कोई नहीं है। गिरी के अनुसार, यदि आपके मन में शंका है कि मरने के बाद मोक्ष मिलेगी या हम भटकेंगे, तो जीते जी आप यहां आकर अपने आत्म-स्वयं पिंडदान से यह चिंता मिटा सकते हैं।

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