हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दौरान नौ दिनों तक माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की उपासना करने के बाद दसवें दिन व्रत का समापन कन्या पूजन से किया जाता है. इसे कन्या भोज भी कहा जाता है. नवरात्रि व्रत का समापन कन्या पूजन से किया जाता है, इसके पीछे गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व छिपा है.

नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना और पूजा-अर्चना की जाता है. व्रत, पूजन-अर्चना नवरात्रि व्रत की पहचान हैं. इस दौरान कन्या पूजन का क्या महत्व है और यह क्यों किया जाता है जानते हैं.

कन्या पूजन का धार्मिक महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि कन्या ही देवी का जीवंत स्वरूप हैं.

माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए 2 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को देवी के रूप में पूजकर उन्हें भोजन कराना शुभ माना जाता है.

कन्या पूजन को सिद्धिदात्री देवी की पूजा से जोड़ा जाता है, जो नवरात्रि के अंतिम दिन आराधित होती हैं.

पौराणिक मान्यता
देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब देवताओं ने मां दुर्गा से असुरों के नाश का आग्रह किया, तो देवी ने कहा कि कन्याओं के रूप में मेरी पूजा करने से ही शक्ति की प्राप्ति होती है.

महिषासुर वध के उपरांत देवताओं ने कन्याओं की पूजा कर मां दुर्गा को धन्यवाद दिया था.

तभी से नवरात्रि व्रत का समापन कन्या पूजन से करने की परंपरा चली आ रही है.

आध्यात्मिक दृष्टिकोण
कन्या पूजन स्त्री शक्ति का सम्मान है.

कन्याओं को अन्न, वस्त्र और उपहार देकर यह संदेश दिया जाता है कि नारी ही सृष्टि की जननी और पालनहार है.

यह कर्म संतानों में सुख-समृद्धि, परिवार में शांति और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है.

कन्या पूजन की विधि
घर पर आमंत्रित की गई 7, 9 या 11 कन्याओं को स्नान कराकर आसन पर बैठाएं.

उनके चरण धोकर आचमन कराएं और तिलक करें.

उन्हें पूरी, चना और हलवा का भोजन कराएं.

कन्याओं को दक्षिणा, उपहार और लाल चुनरी भेंट करें.

अंत में उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें.

कन्या पूजन से मिलने वाले लाभ
घर में लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है.

सभी प्रकार के संकट और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.

परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है.

नवरात्रि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

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