अंबिकापुर: सरगुजा जिला  अनुसूचित जनजाति क्षेत्र है, आदिवासी भूमि के अधिकारों की रक्षा को लेकर कलेक्टर  विलास भोसकर ने छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 के तहत आदिवासियों के हितों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी के दुरुपयोग को रोकने हेतु सख्त निर्देश जारी किए हैं।

हाल ही में जिला प्रशासन के संज्ञान में आया है कि आदिवासियों की भूमि पर खरीद-बिक्री, रजिस्ट्री, नामांतरण, बंटवारा, लीज आदि के मामलों में मूल आदिवासी के नाम पर भूमि की पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करवा ली जाती है। इसके आधार पर अन्य व्यक्ति भूमि का सौदा, रजिस्ट्री, नामांतरण और अन्य राजस्व कार्य करवा लेते हैं, जिससे आदिवासी भूमिहीन हो जाते हैं और उनके अधिकारों का हनन होता है।

कलेक्टर श्री भोसकर ने जारी किए विशेष निर्देश
मूल भू-स्वामी की उपस्थिति यदि किसी न्यायालय में पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर आदिवासी भूमि के हस्तांतरण का प्रकरण आता है, तो उस मामले में मूल भू-स्वामी को न्यायालय में उपस्थित कर पावर ऑफ अटॉर्नी देने के कारणों की जांच की जाएगी।

वृद्ध या असमर्थ व्यक्तियों के मामले यदि आदिवासी भू-स्वामी वृद्ध, बीमार या अन्य कारणों से न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सकता, तो तहसीलदार एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत मिलकर उस ग्रामीण के घर जाकर उसका बयान दर्ज करेंगे। इस कार्यवाही का वीडियो और फोटो भी न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा। ताकि मामले में निराकरण किया जा सके।

न्यायालयों का ऑनलाइन प्रबंधनः जिले के समस्त न्यायालयों को ऑनलाइन किया जाएगा। उपरोक्त प्रकरणों में की गई कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग को सुरक्षित रखा जाएगा।

कलेक्टर विलास भोसकर ने कहा कि  आदिवासियों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। किसी भी प्रकार के शोषण और अनाधिकृत भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए यह निर्देश अनिवार्य रूप से पालन किए जाएंगे। कलेक्टर ने आदेश जारी कर अधिकारियों को इन निर्देशों का कड़ाई से पालन करने को कहा है। ताकि अनुसूचित जनजाति के हित को संरक्षण किया जा सके।

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