नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप पीने से हुई बच्चों की मौतों से संबंधित जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में मांग की गई थी कि पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति के माध्यम से कराई जाए और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधियों द्वारा इसकी निगरानी की जाए।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों की जांच राज्य सरकारें स्वयं करने में सक्षम हैं। हर बार सुप्रीम कोर्ट से निगरानी मांगना न्यायिक प्रणाली पर अविश्वास जताने जैसा होगा। याचिका वकील विशाल तिवारी द्वारा दाखिल की गई थी। उन्होंने दवा में इस्तेमाल होने वाले जहरीले रसायनों जैसे डाई एथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की निगरानी के लिए सख्त नियम बनाए जाने और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने जहरीली दवाएं बनाने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि राज्य सरकारें इस मामले की जांच करने में पूरी तरह सक्षम हैं। उन्होंने याचिकाकर्ता की नीयत पर भी सवाल उठाया और कहा कि अक्सर अखबारों की खबरों के आधार पर पीआईएल दाखिल की जाती हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने वकील तिवारी से उनके अब तक दाखिल किए गए पीआईएल की संख्या पूछी, जिस पर तिवारी ने 8 या 10 होने की जानकारी दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी टिप्पणी के याचिका खारिज कर दी, यह स्पष्ट करते हुए कि राज्य सरकारें इस मामले में उचित कार्रवाई करने में सक्षम हैं।

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