Supreme Court On Social Media Ban: सोशल मीडिया की लत और किशोरों की मानसिक सेहत को लेकर चिंता जताने वाली एक जनहित याचिका (PIL) को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस याचिका में 14 से 18 वर्ष की उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि ऐसा फैसला लेना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, बल्कि यह एक नीतिगत मसला है जो सरकार को तय करना चाहिए।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से पूछा, “क्या आपको पता है, नेपाल में जब ऐसा बैन लगाया गया था, तब क्या हुआ था?” उन्होंने नेपाल का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां टिकटॉक और अन्य 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगाने के बाद युवाओं में हिंसक प्रदर्शन हुए, जिनमें कई लोगों की जान चली गई। अदालत ने कहा कि इस तरह के फैसले समाज और युवाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं, इसलिए इन्हें सरकार को ही नीति के स्तर पर तय करना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने कहा था कि कोविड-19 के बाद बच्चे सोशल मीडिया के आदी हो गए हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने यूरोप, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का हवाला देते हुए कहा कि वहां नाबालिगों के सोशल मीडिया उपयोग पर सख्त नियम हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाना सरकार और मंत्रालयों की जिम्मेदारी है। इसलिए अदालत ने बिना किसी निर्देश के याचिका को निपटा दिया। यह फैसला संकेत देता है कि न्यायपालिका डिजिटल व्यवहार पर बैन लगाने की पक्षधर नहीं, बल्कि नीति निर्माण की जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ना चाहती है।

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