बलरामपुर/राजपुर। संचार टुडे सीजीएमपी न्यूज के स्टेट हेड अभिषेक सोनी ने अपने विरुद्ध सोशल मीडिया में वायरल किए गए “गलत व भ्रामक खंडन पत्र” के विरोध में पुलिस अधीक्षक, थाना प्रभारी राजपुर, जिला शिक्षा अधिकारी, विकासखंड शिक्षा अधिकारी, छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन राजपुर तथा “छ.ग. श्रमजीवी पत्रकार कल्याण संघ” के जिला व ब्लॉक पदाधिकारियों को औपचारिक ज्ञापन सौंपा है।

अभिषेक सोनी ने ज्ञापन में उल्लेख किया है कि दिनांक 17 नवंबर 2025 को शालेय शिक्षक संघ, बलरामपुर द्वारा जारी आधिकारिक नियुक्ति पत्र के आधार पर “नई ब्लॉक इकाई गठन” संबंधी समाचार प्रकाशित किया गया था, जो पूर्णतः तथ्य-आधारित एवं दस्तावेज़ों पर आधारित था। अधिकारिक नियुक्ति पत्र में शिक्षिका दीपिका सिंह को राजपुर इकाई का ब्लॉक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। परंतु समाचार प्रकाशित होने के पश्चात संबंधित शिक्षिका दीपिका सिंह द्वारा बिना किसी सूचना, स्पष्टीकरण या खंडन की प्रति भेजे, एकतरफा आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया में भ्रामक व मानहानिकारक खंडन पत्र वायरल कर दिया गया। शिक्षिका दीपिका सिंह द्वारा लिखा गया कथित “खंडन पत्र” सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो गया, जिसे लेकर पत्रकार जगत में नाराज़गी व्याप्त है और इसे मानहानि एवं तथ्यहीन प्रचार के रूप में देखा जा रहा है। यह पूरा पत्र, बिना पत्र क्रमांक और बिना आधिकारिक प्रक्रिया के सीधे सोशल मीडिया में प्रसारित कर दिया गया।

पत्र में लगाए गए आरोपों को अभिषेक सोनी ने झूठा, असत्य एवं प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि
“यदि किसी प्रकार का खंडन था भी, तो उसकी प्रति पहले मुझे भेजी जानी चाहिए थी। लेकिन बिना सूचना के सोशल मीडिया पर वायरल कर मेरे पेशेगत सम्मान और विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाया गया है। ”उन्होंने इस कृत्य को आईटी एक्ट एवं IPC 499-500 (मानहानि) के अंतर्गत दंडनीय बताया है तथा संबंधित शिक्षिका के विरुद्ध आवश्यक कानूनी, प्रशासनिक एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है। साथ ही अभिषेक सोनी ने अपने ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया कि संबंधित शिक्षिका दीपिका सिंह से यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि उन्होंने खंडन पत्र सीधे संबंधित पत्रकार को भेजने के बजाय सोशल मीडिया में क्यों प्रसारित किया। बिना सूचना दिए खंडन वायरल किए जाने से उनकी साख और पेशेगत छवि को जो क्षति पहुँची है, वह गंभीर चिंता का विषय है और इसके पीछे क्या मंशा थी, यह भी जांच का विषय होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि एक सरकारी शिक्षक द्वारा बिना तथ्य सत्यापन के इस प्रकार की भ्रामक सामग्री प्रसारित करना न केवल अनुचित है बल्कि यह लोक सेवा आचरण नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसके लिए विभागीय स्तर पर कार्रवाई होना आवश्यक है।
मामले के सामने आने के बाद स्थानीय पत्रकार जगत में भी नाराज़गी देखी गई है। कई पत्रकारों ने कहा कि “सोशल मीडिया का उपयोग किसी भी पत्रकार के खिलाफ झूठा वातावरण बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यदि कोई तथ्यगत असहमति है, तो उसका समाधान वैधानिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।”

पत्रकारों के सबसे बडे संगठन “छ.ग. श्रमजीवी पत्रकार कल्याण संघ ने भी मामले को पत्रकार सुरक्षा व सम्मान से जुड़ा विषय मानकर संज्ञान में लिया है।जिला एवं ब्लॉक पदाधिकारियों ने कहा कि “किसी भी पत्रकार के द्वारा दस्तावेज़ आधारित व तथ्यात्मक समाचार प्रकाशित करने के बाद, उसके विरुद्ध गलत जानकारी प्रसारित करना न केवल पत्रकार की विश्वसनीयता को चोट पहुँचाता है, बल्कि इससे स्वतंत्र पत्रकारिता का वातावरण भी प्रभावित होता है। ऐसी घटनाएँ पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्र कार्यप्रणाली के लिए खतरा हैं।”संगठन ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्ष समाचार से असहमत था, तो उसे नियमानुसार संबंधित पत्रकार को खंडन भेजकर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था। लेकिन सीधे सोशल मीडिया में वायरल कर देना दुर्भावनापूर्ण कृत्य माना जाएगा।

ज्ञापन सौंपते समय अभिषेक सोनी ने कहा कि “पत्रकारिता तथ्य और दस्तावेज़ों पर आधारित होती है। किसी भी पत्रकार और किसी सम्मानजनक संस्था की विश्वसनीयता से खिलवाड़ करना, झूठा प्रचार करना या बिना जांच किए नाम खराब करना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।”मामला अब प्रशासनिक, संघीय और पुलिस तीनों स्तर पर पहुँच चुका है, तथा जाँच के बाद उचित कार्रवाई की अपेक्षा की जा रही है।

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