पुत्रदा एकादशी सावन मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है और इसका विशेष महत्व है। इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए रखा जाता है। एकादशी तिथि पर भगवान लक्ष्मी नारायण की भी पूजा करने का महत्व है। ऐसे में आइये जानते हैं कि पुत्रदा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा। और इसका महत्व क्या है।

साल में दो बार आती है पुत्रदा एकादशी
वैसे पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। पहली सावन मास में मनाई जाती है और दूसरी पौष मास में आती है। सावन के महीने में मनाई जाने वाली पुत्रदा एकादशी का अपना महत्व है। जहां एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है वहीं अभी सावन का महीना चल रहा है, जिसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसे में सावन की पुत्रदा एकादशी पर भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा पाने का मौका होता है। इस पर वे मनोकामना भी पूरी करते हैं।

पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन वैवाहिक दंपति को व्रत रखना चाहिए और विधिपूर्वक, पूरे नियम धर्म के साथ पूजा पाठ करनी चाहिए। इससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु और शिवजी अपने भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यही नहीं एकादशी व्रत करने वाले के दुख-दर्द भी दूर होते हैं।

पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 4 अगस्त को सुबह 11.42 बजे लग रही है और 5 अगस्त को दोपहर 1.13 बजे तक रहेगी। सूर्योदय कालीन एकादशी होने की वजह से एकादशी व्रत 5 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र के संयोग में रवि योग का भी संयोग बन रहा है। इसके साथ ही सुबह 4.20 से 5.02 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त और दोपहर 12 बजे से 12.54 बजे तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा जो उत्तम मुहूर्त माने जाते हैं। ये शुभ कार्यों और पूजा पाठ के लिए अनुकूल माने जाते हैं।

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