कांकेर: छत्तीसगढ़ के कांकेर-नारायणपुर बॉर्डर के बिनागुंडा गांव में 15 अगस्त के दिन देशभक्ति की मिसाल पेश करने वाले युवा मुनेश नरेटी को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया। स्वतंत्रता दिवस पर उसने स्कूल परिसर में तिरंगा फहराया था, लेकिन अगले ही दिन नक्सलियों ने उसे बेरहमी से मार डाला।

तिरंगा फहराने की सजा — मौत
मुनेश नरेटी का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने नक्सल स्मारक के पास तिरंगा फहराने की हिम्मत दिखाई। वर्षों तक नक्सल आतंक झेलने वाले इस इलाके में जब सुरक्षा बलों की पहुंच हुई, तो युवाओं में नई उम्मीद जगी थी। मुनेश ने सोचा कि अब विकास और आजादी दोनों उनके गांव तक पहुंचेंगे, लेकिन नक्सलियों ने उसकी देशभक्ति को गुनाह बना दिया।

उसकी शहादत ने ग्रामीणों के मन से नक्सलियों का डर मिटाने की कोशिश की थी, लेकिन आज उसका परिवार भूला-बिसरा और असहाय है।

परिवार अब भी दहशत में, प्रशासन चुप
नागपुर की जन संघर्ष समिति के अध्यक्ष दत्ता शिर्के ने बताया कि जब उनकी टीम गांव पहुंची, तो परिवार अब भी खौफ में जी रहा था। मुनेश का एक भाई डर के कारण गांव छोड़ चुका है और अब तक वापस नहीं लौटा। सबसे दुखद बात यह है कि इस परिवार को अब तक कोई सरकारी मदद या मुआवजा नहीं मिला है।

पुलिस ने दिलाया आश्वासन
कांकेर के एसपी आई. कल्याण एलिसेला ने कहा कि मृतक के परिवार को विधिवत सहायता दी जाएगी। उन्होंने बताया कि प्रक्रिया चल रही है और जल्द ही आर्थिक मदद प्रदान की जाएगी।

मुनेश नरेटी की शहादत बताती है कि बस्तर के लोगों में अब भी देश के प्रति प्रेम और नक्सल आतंक के खिलाफ साहस की भावना जीवित है — लेकिन उनके बलिदान को मान्यता और न्याय मिलना अब भी बाकी है।

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