सूरजपुर: सूरजपुर  जिले के भैयाथान तहसील के ग्राम कोयलारी का एक हैरान कर देने वाला मामला इन दिनों आमजन और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है, जहाँ एक कलयुगी पुत्र ने अपनी जीवित सौतेली माँ को कागज़ों में दो बार मृत बताकर ज़मीन की हेराफेरी की। पीड़ित परिजनों ने इस गंभीर धोखाधड़ी के खिलाफ सूरजपुर पुलिस अधीक्षक को आवेदन सौंपकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

दो बार मृत घोषित, दो बार ज़मीन बेची

परिजनों के अनुसार विरेन्द्र नाथ दुबे ने वर्ष 1978 और 2006 में शैलकुमारी दुबे को मृत घोषित कर दो अलग-अलग स्थानों  ग्राम नमनाकलां (अम्बिकापुर) और करकोटी (भैयाथान) की ज़मीनों का नामांतरण करा उन्हें बेचा। जबकि शैलकुमारी दुबे न केवल जीवित हैं, बल्कि उन्होंने 1985 में माननीय एसडीएम न्यायालय से अपने पक्ष में आदेश भी प्राप्त किया था।

शाही पुरोहित परिवार का मामला

यह पूरा विवाद सूरजपुर जिले के प्रतिष्ठित राजपुरोहित परिवार का है, जहाँ द्वारका प्रसाद दुबे के चार पुत्रों की संतानों के बीच भूमि विवाद चल रहा है। विरेन्द्र, जो पहले विवाह से जन्मा पुत्र है, उसने शैलकुमारी को दो बार मृत घोषित कर उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक खातों की भूमि को एकतरफा रूप से बेच दिया।

फर्जी प्रमाण पत्रों का खेल

शिकायत में बताया गया है कि 1967 में विरेन्द्र ने थाना रघुनाथनगर से फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया और वर्ष 2006 में उसका उपयोग कर तहसील अम्बिकापुर से नामांतरण करवा लिया। दिलचस्प बात यह है कि जिस भूमि की बिक्री 1967 के मृत्यु प्रमाण पत्र पर हुई, उसे शैलकुमारी ने 1976 में क्रय किया था। यानी, मृत्यु प्रमाण पत्र उस भूमि क्रय की तिथि से भी 9 वर्ष पहले का है।

एसडीएम कोर्ट से मिला था न्याय

1984 में पहली बार ज़मीन बिक्री की जानकारी मिलने के बाद शैलकुमारी ने एसडीएम अम्बिकापुर की अदालत में अपील की। 30 नवम्बर 1985 को अदालत ने उन्हें जीवित मानते हुए नामांतरण उनके पक्ष में करने का आदेश दिया था।

तहसीलदार पर कार्रवाई  

भूमि के मामले में तहसीलदार संजय राठौर की संलिप्तता पाई गई, जिस पर संभागायुक्त सरगुजा ने निलंबन की कार्यवाही की। परिजनों का आरोप है कि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आने के बावजूद पुलिस ने अब तक कोई स्पष्ट आपराधिक कार्रवाई नहीं की है।

एक व्यक्ति की मृत्यु दो बार कैसे?

परिजन सवाल कर रहे हैं कि यदि शैलकुमारी की मृत्यु 1978 में हुई थी तो 2006 में फिर से मृत्यु प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या कोई व्यक्ति दो बार मर सकता है?

पिता राधेश्याम दुबे के जीवित रहते ही विरेन्द्र ने बार-बार विवाद पैदा किए। एक समय पिता को पीड़ा देने तक की हरकतें की गईं, जिससे वृद्धावस्था में वे मानसिक रूप से बेहद आहत हुए। यहां तक कि विक्रय के असली दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने वाले पटवारी को भी धमकाया गया।

परिजनों की माँग: दर्ज हो FIR

शैलकुमारी दुबे के पुत्र व परिवारजन अब इस मामले में FIR दर्ज करने, फर्जी दस्तावेज़ों की जांच करने व दोषियों को सज़ा दिलाने की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्षों से इस अन्याय को झेलते आ रहे हैं, पर अब वे न्याय की अंतिम लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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