नई दिल्ली:  लोक आस्था का महापर्व यानी छठ पूजा रामायण और महाभारत के समय से चली आ रही है। इसे वैश्विक पहचान भी मिल चुकी है। इसे लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

इस पर्व में भगवान सूर्य और माता छठी की आराधना और उपासना की जाती है। इसका उद्देश्य शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाना, संतान की रक्षा करना और परिवार में सुख-समृद्धि और संपन्नता लाना है।यह पर्व नहाय-खाय के साथ शुरू होता है और चार दिनों तक चलता है। व्रतियों में से अधिकतर लोग निर्जला उपवास रखते हैं, जो 36 घंटे या उससे अधिक का होता है। पहले दिन बाहरी शुद्धि की जाती है, दूसरे दिन खरना के माध्यम से आंतरिक शुद्धि होती है और फिर दो दिनों तक सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, पहले डूबते सूर्य को और फिर उगते सूर्य को।

इस महापर्व की खास बात यह है कि इसमें किसी पंडित या पुरोहित की जरूरत नहीं होती। भक्त सीधे भगवान के साथ अपने मन की प्रार्थना करता है।छठ पूजा को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सबसे आम नाम है छठ पूजा, लेकिन इसे छठी पूजा, डाला पूजा, छठ मईया पूजा, सूर्य षष्ठी, कार्तिक छठ, चैती छठ और रवि षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व में बांस से बने सूप और डाले का खास महत्व है, इसी वजह से इसे डाला छठ भी कहा जाता है।छठ पूजा साल में दो बार मनाई जाती है। पहली बार चैती छठ के रूप में, जो चैती महीने में आता है, और दूसरी बार कार्तिक महीने में, जिसे कार्तिक छठ कहते हैं।

इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें व्रतियों की श्रद्धा और समर्पण ही पूजा का मूल है। निर्जला उपवास, सूर्य को अर्घ्य देना और पवित्रता के नियमों का पालन भक्तों की भक्ति और संयम की परीक्षा है।छठ पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह लोगों की भावनाओं और आस्था से जुड़ा उत्सव है।

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