गड्ढों में सड़कें, तालाब जैसी सड़क पर सफर और ओवरलोडिंग का आतंक

सड़क में गड्ढे नहीं, बल्कि गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ रही है” ये बोलते थक गए राहगीर, अब कहते है तालाब पर चलने जैसा महसूस हो रहा है

सड़कों पर खुलेआम दौड़ रहीं गिट्टी और रेत लोड ओवरलोड वाहन, सड़कें बनी तालाब

(अभिषेक सोनी) बलरामपुर/राजपुर। बलरामपुर जिले की सड़कों पर चलना अब तालाब पर वाहन चलाने जैसा हो गया है। अंबिकापुर से पस्ता और बलरामपुर रामानुजगंज तक के सड़क की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि वाहन चालक खुद कहते हैं— “तालाब पर चलने जैसा महसूस हो रहा है”

ओवरलोड ट्रक, हाइवा और डंपर इन सड़कों को धीरे-धीरे चीरकर खा रहे हैं। क्षमता से अधिक गिट्टी और रेत लोड किए वाहन रोजाना सैकड़ों की संख्या में गुजरते हैं। खनन और परिवहन विभाग की कथित मिलीभगत से यह कारोबार धड़ल्ले से जारी है। नतीजा यह है कि डामर उखड़ चुका है, गहरे गड्ढे और धूल-कीचड़ से सड़कें तालाब में तब्दील हो गई हैं।

गागर और गेउर नदी की पुलियों की हालत बेहद चिंताजनक है। रेलिंग टूटी पड़ी है और गहरे गड्ढों के बीच से गुजरना अब किसी जुए से कम नहीं। बारिश और अंधेरे में हादसे का खतरा और बढ़ जाता है।

10 जून से 15 अक्टूबर तक पूरे छत्तीसगढ़ में रेत के उत्खनन-परिवहन पर केंद्रीय और राज्य स्तर से प्रतिबंध है, बावजूद इसके राजपुर और कुसमी क्षेत्र में नदियों से खुलेआम रेत निकाली जा रही है। जेसीबी और ट्रैक्टर-ट्रक दिनदहाड़े नदी का सीना चीर रहे हैं और बिना पिटपास व बिल के रेत यूपी, झारखंड और अंबिकापुर तक पहुँच रही है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने बार-बार शिकायतें कीं, पत्रकारों और समाजसेवियों ने भी मुद्दा उठाया, लेकिन कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित है। विभागीय “सेटिंग” के कारण बड़े माफिया बेखौफ कारोबार चला रहे हैं।

परिणामस्वरूप सड़कें टूट रही हैं, पुल-पुलियों की उम्र घट रही है, गांवों में धूल प्रदूषण से स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है और आने वाले समय में जलसंकट का खतरा भी मंडरा रहा है।

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