जबलपुर : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि पक्षों(पति और पत्नी) के बीच वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करना असंभव हो जाता है, तो न्यायालय इस तथ्य से अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता है. हम तलाक नहीं देकर दोनों पक्षों की पीड़ा को बढ़ा नहीं सकते है. हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट तथा जस्टिस अनुराधा शुक्ला की युगलपीठ ने इस आदेश के साथ 9 साल से अलग रहने वाले पति-पत्नी के विवाह विच्छेद पर मोहर लगा दी.

ग्वालियर निवासी विकास आर्य की तरफ से दायर की गई थी याचिका, कुटुम्ब न्यायालय के आदेश को दी गई थी चुनौती

ग्वालियर निवासी विकास आर्य की तरफ से दायर की गई याचिका में कुटुम्ब न्यायालय द्वारा तलाक के आवेदन को खारिज किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गयी थी. अपील पर मार्च 2025 में हुई सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने तलाक के लिए सहमति व्यक्त की थी. इसके बाद कूलिंग पीरियड माफ करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था. इसके बाद परिवादी पत्नी की तरफ से स्थगन की मांग करने पर प्रकरण को मध्यस्थता के लिए भेजा गया था.

हाई कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी पिछले 9 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और तलाक चाहते हैं

हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश कर बताया गया था कि प्रतिवादी पत्नी मध्यस्थता के लिए उपस्थित नहीं हुई, इसलिए मामले को न्यायालय में वापस भेज दिया गया है. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी पिछले 9 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और तलाक चाहते हैं.

जैसा की पूर्व में पारित आदेश पत्र से स्पष्ट है. ऐसी स्थिति में तलाक का आदेश नहीं देने का अर्थ होगा कि विवाह पूरी तरह से टूटने के बावजूद विशेष चरण में रोक दिया गया है. पक्षों के बीच वैवाहिक संबंधों के समाधान की कोई संभावना नहीं है. युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ विवाह विच्छेद के आदेश जारी किए.

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