

कोरबा, छत्तीसगढ़: देश की प्रमुख कोयला खदानों में गिनी जाने वाली गेवरा कोयला खदान एक बार फिर विवादों में है। एसईसीएल बिलासपुर के अंतर्गत संचालित यह मेगा प्रोजेक्ट जहां एक ओर रिकॉर्ड उत्पादन और प्रेषण के आंकड़े छू रहा है, वहीं दूसरी ओर घटिया गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति ने पूरे क्षेत्र में हलचल मचा दी है।
जानकारी के मुताबिक, विवाद ओल्ड दीपका स्टॉक यार्ड से जुड़ा है, जहां बड़े पैमाने पर मिट्टी और शेल पत्थर को कोयले के रूप में ट्रकों में भरकर पावर प्लांट्स को भेजे जाने के आरोप सामने आए हैं। इन ट्रकों में लोड किए गए कोयले की ग्रॉस कैलोरिफिक वैल्यू (GCV) मात्र 3200 मापी गई, जबकि गेवरा खदान से आमतौर पर 3800–4000 GCV के बीच की गुणवत्ता वाला कोयला मिलता है।
इस खराब गुणवत्ता की वजह से डीओ होल्डरों और कोल लिफ्टरों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। उनका कहना है कि पावर प्लांट्स इस वजह से भुगतान में कटौती कर रहे हैं, जिससे प्रति ट्रक 20 से 30 हजार रुपये तक का घाटा हो रहा है।
आरोप है कि कोल प्रबंधन बारिश का हवाला देकर “जो है, वही मिलेगा” की नीति पर काम कर रहा है। लिफ्टरों का आरोप है कि उन्हें घटिया कोयला लोड करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
स्टॉक यार्ड की तस्वीरों से ऐसा लग रहा है जैसे वह गिट्टी खदान हो, न कि कोयले की। बताया जा रहा है कि जी-11 ग्रेड कोयले के साथ इनसिमबेंड (पत्थरनुमा) कोयले का भी उत्पादन हो रहा है, परंतु इसके लिए कोई अलग भंडारण नहीं है। यही कारण है कि इस मिलावटी कोयले को उच्च गुणवत्ता वाले कोयले में मिलाकर भेजा जा रहा है।





















