कोरबा। सरकार के नियंत्रण में कोल इंडिया की सहायक कंपनियों के द्वारा चलाई जा रही कोयला खदानों में खून खराबा के जरिए वर्चस्व स्थापित करने के मामले झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिसा की खदानों में सामने आते रहे हैं। लेकिन समय के साथ ऐसे मामलों की पहुंच छत्तीसगढ़ के कोरबा में संचालित एसईसीएल की खदानों में भी हो गई है। मेगा प्रोजेक्ट गेवरा में गैंगवार की घटना में दो आरोपियों को जेल भेज दिया गया है। अब संभावित दुर्घटनाजन्य प्वाइंट्स पर सतर्कता के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही जरूरत महसूस की जा रही है कि खासतौर पर लोडिंग प्वाइंट पर सुरक्षा उपायों को पुख्ता किया जाए।

कोल इंडिया के साथ-साथ दुनिया की बड़ी खदानों में गेवरा माइंस का नाम शामिल है। यहां कोल स्टॉक बी-2 में कोयला की छंटाई के चक्कर में लिफ्टर्स आमने-सामने हो गए। इस दौरान रूंगटा कंपनी के लिए काम करने वाले कुछ कर्मी बुरी तरह से जख्मी हो गए। जानकारी में कहा गया कि पूर्व कांग्रेस नेता के लिए काम करने वाले गुर्गों ने इस घटना को अंजाम दिया। जिस तरीके से रूंगटा के कर्मियों को सडक पर लिटाने के साथ घसीटा गया और फिर मारपीट की गई वह अत्यंत खतरनाक मंजर रहा। हालांकि बाद में इस पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की गई।

दीपका थाना प्रभारी प्रेमचंद साहू ने बताया कि इस मामले में तीन के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया था,जिनमें दो आरोपी बल्ला सिंह और चंदन कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। तीसरा अज्ञात और फरार है। प्रकरण में आगे और भी तथ्यों का पता लगाया जा रहा है।

गेवरा माइंस में गैंगवार के मामले जिस तेजी से लगातार बढ़ रहे हैं उसमें यहां की व्यवस्था और चुनौतियों की भी तस्वीर को पेश किया है। अपेक्षाकृत कोरबा जिले की खदानों को दूसरी कंपनियों के मुकाबले शांत और सुरक्षित माना जाता रहा है लेकिन अब जो नजारे सामने आ रहे हैं वे प्रबंधन के साथ-साथ कानून व्यवस्था से जुड़े तंत्र के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि खदानों में काम करने वाले एसईसीएल के अधिकारियों, कर्मियों और ठेका कर्मियों पर ऐसी घटनाएं गलत प्रभाव छोड़ रही है कि पता नहीं कब क्या हो जाए। इसलिए इस बात की आवश्यकता समझी जा रही है कि खदानों में कोल स्टॉक जैसी संवेदनशील जगह पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने ही चाहिए। ऐसा होने पर कोल लिफ्टर्स के बीच कुछ तो भय बना रहेगा और वे मनमानी करने से पहले 10 बार सोचेंगे।
सूत्रों का कहना है कि खदानों में उत्खनन की प्रक्रिया के बाद उसकी लोडिंग करने वाली गाडियां वे-ब्रिज पर पहुंचती हैं जहां उनका कांटा होता है और इसके पश्चात् कोयला को कोल स्टॉक में डंप किया जाता है। यहां से डीओ होल्डर्स को रोड सेल की व्यवस्था के तहत कोयला लेना चाहिए लेकिन होता यह है कि संबंधित पार्टियां अपने दम-खम के आधार पर स्टीम कोयला को प्राप्त करने में हावी रहती है। चाहे दूसरे को कोयला के नाम पर कुछ भी प्राप्त हो। इसी चक्कर में मारपीट तक हो जाती है। कहा जा रहा है कि लोडिंग इंस्पेक्टर को नीति पर अमल कराने की जिम्मेदारी है। उनके बिना ऐसे काम नहीं होने चाहिए। हालिया हादसे के बाद जो चीजें सामने आई है उन पर प्रबंधन किस कदर गंभीरता दिखाता है, इसका इंतजार है। वहीं गेवरा घटना के बाद डरे हुए ड्राइवर एसोसिएशन ने प्रबंधन और पुलिस को ज्ञापन सौंपकर सुरक्षा देने की मांग भी की है।

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