

(अभिषेक सोनी) बलरामपुर/राजपुर/कुसमी। बलरामपुर जिले के राजपुर और कुसमी क्षेत्र में रेत माफियाओं का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रशासनिक मशीनरी और कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद नदियों से रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन धड़ल्ले से जारी है। हालात ऐसे हैं कि आरटीओ, माइनिंग और राजस्व विभाग की मिलीभगत से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रक, ट्रैक्टर और हाइवा नदियों का सीना चीरकर निकली रेत को यूपी, झारखंड और अंबिकापुर तक पहुँचा रहे हैं।
मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर नदियों का दोहन
राजपुर मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित परसवार महान नदी, नरसिंहपुर महान नदी, गोपालपुर महान नदी, कर्रा महान नदी, बासेन महान नदी और धंधापुर महान नदी में बड़े पैमाने पर रेत उत्खनन का काम चल रहा है। दिनदहाड़े जेसीबी और मजदूरों की मदद से रेत खोदकर ट्रक और ट्रैक्टरों में लोड किया जा रहा है। इनमें से किसी के पास पीटपास या ग्राम पंचायत से एनओसी तक नहीं है। इसके बावजूद प्रशासन पूरी तरह मूकदर्शक बना हुआ है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन नदियों से रेत लोड कर निकलने वाले वाहनों को कई नाका-चेकपोस्ट से गुजरना पड़ता है। लेकिन न तो इनकी जांच होती है और न ही कार्रवाई। सूत्र बताते हैं कि पूरा खेल विभागीय अधिकारियों और माफियाओं की “सेटिंग” के तहत चल रहा है। यही वजह है कि प्रतिबंध के बावजूद अवैध रेत कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं।
राजपुर के नरसिंहपुर, सिंगचौरा और परसवार महान नदी और कुसमी के गलफुल्ला नदी में अवैध रेत उत्खनन इतना ज्यादा हो चुका है कि अब ये नदियाँ तालाब जैसी नजर आने लगी हैं। गहरे गड्ढों और असंतुलित खुदाई के कारण न केवल जलधारा प्रभावित हो रही है, बल्कि स्थानीय पर्यावरण और जीव-जंतुओं के लिए खतरा भी बढ़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि लगातार मशीनों से रेत खींचे जाने से नदी के किनारे कट रहे हैं और खेत भी प्रभावित हो रहे हैं।

कानून स्पष्ट, लेकिन पालन शून्य
गौरतलब है कि 10 जून से 15 अक्टूबर 2025 तक पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में नदियों और जलमार्गों से रेत उत्खनन और परिवहन पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के निर्देश के आधार पर पूर्ण प्रतिबंध है।
गौरतलब है कि रेत खनन और परिवहन पर लगाया गया प्रतिबंध केवल जिला प्रशासन का नहीं, बल्कि केंद्रीय और राज्य स्तर के कानूनों का हिस्सा है। दरअसल, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी सस्टेनेबल सैंड माइनिंग गाइडलाइन 2016 और एनफोर्समेंट एंड मॉनिटरिंग गाइडलाइन 2020 में स्पष्ट प्रावधान है कि मानसून के दौरान नदियों से रेत का उत्खनन पूरी तरह वर्जित रहेगा। यही दिशा-निर्देश मानते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने भी छत्तीसगढ़ गौण खनिज नियमावली, 2015 और खनन (पट्टा, उत्खनन एवं परिवहन) नियम, 2006 के तहत हर वर्ष अधिसूचना जारी कर 10 जून से 15 अक्टूबर तक रेत खनन व परिवहन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया है। इसका मकसद मानसून के दौरान बाढ़, नदी कटाव और पर्यावरणीय नुकसान को रोकना तथा जलीय जीवों के प्रजनन चक्र की रक्षा करना है।
यह अवधि इसलिए संवेदनशील है क्योंकि— मानसून में नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है, और खनन से बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।यही समय जलीय जीवों, खासकर मछलियों और अन्य प्रजातियों के प्रजनन काल का होता है।अवैध खनन से न केवल नदी का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है, बल्कि वन एवं राजस्व विभाग को करोड़ों का नुकसान भी उठाना पड़ता है।

कुसमी में भी वही हाल, बड़े पैमाने पर निकल रहा रेत
राजपुर ही नहीं, बल्कि कुसमी के गलफुल्ला नदी में भी यही तस्वीर देखने को मिलती है। प्रशासन की आँखों के नीचे से प्रतिदिन सैकड़ों रेत लोड वाहन गुजर रहे हैं। इन वाहनों की संख्या इतनी अधिक है कि स्थानीय लोग भी अब सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर किसकी शह पर यह कारोबार चल रहा है।
माइनिंग और राजस्व विभाग की ओर से कभी-कभार की जाने वाली छिटपुट कार्रवाई केवल खानापूर्ति साबित हो रही है। कुछ ट्रैक्टर जब्त करने या चालान काटने की खबरें आती हैं, लेकिन बड़े माफियाओं तक किसी का हाथ नहीं पहुँचता। यही वजह है कि यह काला कारोबार और भी तेजी से फल-फूल रहा है।
जनता परेशान, प्रशासन मौन
ओवरलोड रेत से भरे वाहनों के कारण मुख्य मार्ग टूट रहे हैं। धूल और गड्ढों से आम राहगीर परेशान हैं। दूसरी ओर, ग्रामीणों में यह डर भी है कि लगातार नदी का सीना चीरने से आने वाले सालों में उन्हें जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब कानूनी रूप से रेत उत्खनन पूरी तरह वर्जित है, तब खुलेआम चल रहे इस कारोबार पर जिला प्रशासन कब नकेल कसेगा? या फिर माफियाओं के दबाव और सेटिंग के आगे प्रशासन यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा?






















