

अंबिकापुर।सरगुजा जिले में लगभग दो वर्षों तक कलेक्टर रहे विलास भोस्कर संदीपन ने अपने कार्यकाल में ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसे प्रशासनिक इतिहास में लंबे समय तक याद किया जाएगा। जैसे ही उनका स्थानांतरण आदेश आया, उन्होंने बिना किसी औपचारिक देरी के “कलम डाउन” किया और जिले से विदा हो गए। यह उनकी कार्यशैली और अनुशासन का प्रतीक था। उनके जाने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि सरगुजा ने एक ईमानदार और संवेदनशील प्रशासक को खो दिया है।कोई व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध न होने पर लाख बुराई करे,कमियां निकाले पर बच्चों, बुजुर्गों, युवाओं के हित में जो काम कर गए हैं उसे देखना चाहिए।ट्रांसफर से दबाव देकर काम कराने वाले नेता, मंत्री खुश हो सकते हैं पर आमजन नहीं।
भूमि मामलों में संदीपन का नाम भू-माफियाओं के लिए आतंक का पर्याय बन गया था। उनके कार्यकाल में भू-माफियाओं ने सचमुच “बोरिया-बिस्तर समेट लिया। ”शहर की लगभग 4.30 एकड़ की बहुमूल्य शासकीय भूमि, जिस पर अवैध कब्जा था, उसे मुक्त कराकर शासन के नाम दर्ज कराना अपने आप में ऐतिहासिक कदम रहा। इसके बाद से कई माफिया भूमिगत हो गए। अंबिकापुर शहर और उसके आसपास बंगाली पुनर्वास की भूमि पर हमेशा भूमाफियाओं की नजर रहती थी, लेकिन संदीपन ने इस पर कड़ी लगाम लगाई। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने एक भी ऐसा आदेश पारित नहीं किया, जिससे पुनर्वास भूमि की खरीद-बिक्री संभव हो सके।
उन्होंने सिर्फ आदेश जारी कर कर्तव्य की इतिश्री नहीं की, बल्कि पटवारियों, राजस्व निरीक्षकों और अन्य अधिकारियों पर भी कड़ी निगरानी रखी। जमीन की हेराफेरी, फर्जी दस्तावेजों और अनैतिक गतिविधियों पर उन्होंने सख्ती से रोक लगाई। मैनपाट क्षेत्र में 1000 हेक्टेयर से अधिक शासकीय भूमि, जिसे लोगों ने अवैध रूप से अपने नाम कर लिया था, उसे खाली कराकर शासन के रिकार्ड में चढ़ाना सरगुजा के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा भूमि सुधार अभियान माना जा रहा है। महामाया पहाड़, तकिया क्षेत्र सहित कई स्थानों पर अवैध कब्जों को पूरी ताकत से हटाया गया। भूमि से जुड़ी फर्जी खरीद-बिक्री और न्यायालयीन आदेशों की कूटरचना करने वालों पर उन्होंने शिकंजा कसते हुए करीब 40 लोगों पर प्रकरण दर्ज कराया और कई जमीन दलालों को जेल भिजवाया। सिर्फ भूमि ही नहीं, बल्कि सहकारी बैंक में करोड़ों रुपये के घोटाले का भी उन्होंने गहराई से जांच कराकर घोटाले का पर्दाफाश किया।सरकारी बैंक के प्राधिकृत अधिकारी से पुनः जांच कराकर बड़ा पर्दाफाश किया गया, जिसमें शामिल कई आरोपित आज भी जमानत से बाहर नहीं आ सके हैं।
सख्ती के साथ संवेदनशीलता की भी मिसाल
कलेक्टर रहते भोसकर ने जिले के अधिकारियों को स्पष्ट संदेश दिया कि भारी-भरकम वेतन सिर्फ सुविधा के लिए नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी के लिए है। ग्रामीण भ्रमण के दौरान स्कूलों में बच्चों के लिए हरी साग-सब्जियां ले जाने की पहल उन्होंने खुद शुरू कराई। यह अभियान इतना सफल हुआ कि आज सरगुजा के लगभग हर स्कूल में मध्यान्ह भोजन के लिए पर्याप्त हरी सब्जियां पहुंचने लगीं और अधिकारियों की यह आदत बन गई।राष्ट्रीय भावना के प्रति भी उनकी सोच स्पष्ट थी। कलेक्टर रहते हुए उन्होंने सभी शासकीय स्कूलों में नियमित रूप से ‘वंदे मातरम’ का गायन शुरू कराया। वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर यह पहल पूरे जिले में जनांदोलन बन गई। खास बात यह रही कि यह अभियान सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मदरसों में भी वंदे मातरम का गायन आरंभ हुआ वृद्ध आश्रम, लाइब्रेरी, सुपर 30 बड़ा काम है। कुल मिलाकर, विलास भास्कर संदीपन का सरगुजा कार्यकाल सख्त प्रशासन, पारदर्शिता, संवेदनशीलता और राष्ट्रभाव के अद्भुत समन्वय का उदाहरण रहा जो आने वाले अधिकारियों के लिए एक आदर्श बनकर रहेगा।

पहुंचने पहाड़ कटवा बनाई सड़क
सरगुजा में एक ऐसा गांव है जो पहाड़ी पर बसा हुआ है। बरसात क्या गर्मी में यहां पहुंचना आसान नहीं था। पहली बार यहां कलेक्टर पहुंचे और 5 किलोमीटर पहाड़ को काटकर सड़क बनवा दी और लोगों तक सुविधा पहुंचाई यह उनकी संवेदनशीलता की निशानी है।लुंड्रा के चितालाता क्षेत्र में बच्चों ने कहा सड़क नहीं है तो उन्होंने पहल की और स्कूल तक पक्की सड़क बनवा दी। अब आलोचना करने वाले कहेंगे यह तो प्रशासन का काम है। हां, है पर अब तक किसी कलेक्टर ने इतनी संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई।






















