

रायपुर। 100 रुपए रिश्वत मामला में करीब 40 साल बाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए आरोपी क्लर्क को बरी कर दिया। कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई एक साल की कैद और 1000 रुपए जुर्माने की सजा को निरस्त कर दिया है।
मामला रायपुर निवासी रामेश्वर प्रसाद अवधिया से जुड़ा है, जो एमपीएसआरटीसी के वित्त विभाग में बिल सहायक के पद पर कार्यरत था। शिकायतकर्ता अशोक कुमार वर्मा ने 1981 से 1985 तक की सेवाकालीन बकाया राशि के भुगतान के लिए उससे संपर्क किया। आरोप था कि बिल भुगतान के लिए अवधिया ने 100 रुपए की रिश्वत मांगी।
शिकायत पर लोकायुक्त ने ट्रैप टीम गठित की और शिकायतकर्ता को 50-50 रुपए के रासायनिक नोट देकर भेजा गया। टीम ने आरोपी को रंगे हाथों पकड़ लिया और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। दिसंबर 2004 में निचली अदालत ने अवधिया को दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी।
हालांकि, हाईकोर्ट में जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने अपील की अंतिम सुनवाई में कहा कि अभियोजन पक्ष अपने साक्ष्यों से आरोप सिद्ध नहीं कर पाया। मौखिक, दस्तावेजी या परिस्थितिजन्य सभी साक्ष्य कथित अपराध के आवश्यक तत्व साबित करने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि अस्थायी है और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता।
इसके साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 30(2) के अनुसार पुराने अधिनियम के तहत लगाए गए आरोप तभी वैध होंगे जब वे नए प्रावधानों के अनुरूप हों। चूंकि अभियोजन अवैध परितोषण की मांग और स्वीकृति साबित नहीं कर सका, इसलिए अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हुए और उसे दोषमुक्त कर दिया गया।






















