

आशीष कुमार गुप्ता
अंबिकापुर/बतौली: छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में बरसात के मौसम में उफनती मछली नदी को पार कर सुपलगा के स्कूल पहुंच रहे शिक्षक सहित छात्र छात्राएं जो हर रोज जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर हैं जहां प्रशासन सहित खाद्य मंत्री भी बेबस नजर आ रहे हैं।
भारत के इतिहास में आजादी हुए 76 वर्ष बीत गए और आज की आधुनिकता में छत्तीसगढ़ समृद्ध छत्तीसगढ़ कहला रहा है जहां छत्तीसगढ़ के शिमला मैनपाट में लोग पुल के अभाव में बरसात का पूरे 3 महीने लबालब भरे मछली नदी को पार कर स्कूल जाने शिक्षक सहित छात्र-छात्राएं को हर रोज मछली नदी को अपनी जान दांव में लगाकर पार कर रहे है जबकि गंभीर रूप से बीमार को ईलाज करवाने नदी पार करना ही एक मात्र उपाय है। तब जाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया जाता है।

मैनपाट विकासखण्ड के ग्राम पंचायत सुपलगा से लगे प्राथमिक और माध्यमिक शाला ढोढ़ीटिकरा और नरकट स्थित स्कूल में बच्चों को जान जोखिम डालकर नदी पार कर पढ़ाने जा रहें शिक्षक,एबीईओ मैनपाट सतीश तिवारी ने भी शिक्षकों के साथ नदी पार कर किया पहुंचविहीन इलाकों में स्थित स्कूलों का निरीक्षण किया गया।

गौरतलब है कि मैनपाट विकासखंड के ग्राम पंचायत सुपलगा से लगे प्राथमिक शाला ,माध्यमिक शाला ढोढीटिकरा प्राथमिक शाला नरकट जाने के लिए मछली नदी को पार करना पड़ता है जबकि कदनई, लोटाभावना, कदमटिकरा स्थित प्राथमिक स्कूल मिडिल स्कूल को जाने हेतु घुनघुट्टा नदी को पार कर स्कूल जाने की मजबूरी बना हुआ है
मछली नदी एवम घुनघुट्टा नदी पुल के अभाव के कारण बरसात के पूरे 3 महीने ग्रामीण जनों शिक्षक छात्र छात्राओं को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है
हर चुनावी सभा में पुल बनाने का सिर्फ आश्वासन ही लोगों को मिला है जिसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण जन पुल ना होने का दंश आज तक झेल रहे हैं जबकि पुल के अभाव में नदी पार करते समय लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं फिर भी आज तक पिछले 20 वर्षों से सीतापुर विधानसभा के लोकप्रिय नेता एवं खाद्य मंत्री अमरजीत भगत द्वारा पुल के लिए आश्वासन ही दिया गया लेकिन अबतक कोई कार्यवाही नहीं हो सका है इसके साथ ही प्रशासन भी मुख दर्शक बन ग्रामीण जनों के लिए कोई विशेष पहल आज तक नहीं की गई है जिससे इस पिछड़े क्षेत्र के लिए लगातार समस्या बनी हुई है और शिक्षक एवं छात्र-छात्राओं को तीन चार किलोमीटर पैदल चलकर अपने अपने स्कूल पहुंचते हैं पुलिया नहीं होने से बरसात के पूरे 3 महीने सही समय स्कूल पहुंचने को ध्यान में रखते हुए शिक्षक एवं बच्चे नदी को ही पार कर देते हैं शासन प्रशासन को ऐसे स्कूलों को पहुंचविहीनता के दश से बचाने विशेष पहल करनी चाहिए ताकि ग्रामीण जनों को लाभ मिल सके।





















