CG High Court Decision: बिलासपुर से एक महत्वपूर्ण खबर सामने आई है, जहां छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अविवाहित बेटी के भरण-पोषण और विवाह खर्च को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि अविवाहित बेटी की देखभाल, शिक्षा और शादी का खर्च उठाना पिता का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकता। कोर्ट ने कन्यादान को हिंदू पिता की पवित्र जिम्मेदारी बताते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

यह मामला सूरजपुर की 25 वर्षीय युवती से जुड़ा है, जिसने फैमिली कोर्ट में आवेदन दिया था। उसने बताया कि मां के निधन के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली और अब वह अपनी पहली बेटी का ध्यान नहीं रखते। पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और हर महीने 44,642 रुपये का वेतन प्राप्त करते हैं। युवती ने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 और 3(बी) के तहत भरण-पोषण और विवाह खर्च की मांग की थी।

फैमिली कोर्ट ने 2 सितंबर 2024 को आदेश दिया कि पिता बेटी की शादी तक हर माह 2,500 रुपये भरण-पोषण देंगे और विवाह के लिए 5 लाख रुपये प्रदान करेंगे। इसके खिलाफ पिता ने हाईकोर्ट में अपील की। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा केस के अनुसार दोनों पक्षों द्वारा शपथ पत्र नहीं दिया गया, इसलिए आदेश गलत है। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।

CG High Court Decision में कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 3(बी)(ई) के अनुसार अविवाहित बेटी की शादी का खर्च भी भरण-पोषण की परिभाषा में आता है। अदालत ने पूनम सेठी बनाम संजय सेठी के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि पिता अपनी बेटियों की देखभाल की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता।

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