
कोरबा। बारिश के मौसम में रेत सहित अन्य खनिजों के खनन पर लगाए गए सख्त प्रतिबंध के बावजूद नदी में जेसीबी और ट्रैक्टर उतार कर रेत की धड़ल्ले से चोरी जारी है। सख्त करवाई के अभाव में इनके हौसले काफी बुलंद हैं। इस मामले को लेकर खबर का प्रकाशन किया और आज शनिवार को राजस्व विभाग की टीम ने खनिज निरीक्षक के साथ सीतामढ़ी घाट पर दबिश दी। लगभग 5 घंटे तक यहां कार्रवाई और लिखापढ़ी की गई। कुल जमा मात्र एक जेसीबी और एक ट्रैक्टर पकड़ में आ सका जबकि अन्य ट्रैक्टरों के चालक ट्रॉली छोड़कर तो कोई रेत को पलटकर ट्रैक्टर ट्राली लेकर भाग निकाला। कहने को तो कार्रवाई हुई लेकिन इस कार्रवाई ने इतना तो साबित कर दिया है कि रेत माफिया के आगे प्रशासन तंत्र कहीं ना कहीं बेहद मजबूर हालात में है। जिले भर में दर्जन नहीं बल्कि सैकड़ा भर गाड़ियां चल रही हैं किंतु विभागीय अधिकारियों में समन्वय का अभाव के कारण शासन और कलेक्टर की मंशाअनुरूप धरातल पर टास्क फोर्स की ठोस कार्रवाई कहीं भी नजर नहीं आ रही है, जैसा कि अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण के मामले में दूसरे जिलों में देखने व सुनने को मिलती है।
फिलहाल, आज की कार्रवाई की बात करें तो राजस्व विभाग की टीम के पहुंचते ही रेत चोरों में भगदड़ की स्थिति निर्मित हो गई और वह जिस दूसरे रास्ते को भागने के लिए उपयोग करते हैं, वहां पर किसी तरह की घेराबंदी नहीं होने के कारण एक बार फिर भाग निकलने में सफल हो गए।कोरबा एसडीएम सरोज महिलांगे, तहसीलदार भूषण मंडावी, नायब तहसीलदार दीपक पटेल, खनिज निरीक्षक रामखिलावन कुलार्य और कोतवाली से चंद पुलिस स्टाफ ने आज सुबह करीब 11 बजे घाट पर दबिश दी। यहां का नजारा देख टीम भी भौंचक रह गई। अधिकारियों को आता देख रेत चोर अलर्ट हो गए और जेसीबी का चालक वाहन छोड़कर भाग निकला। बिना नंबर का एक ट्रैक्टर भी पकड़ा गया। यहां पर करीब आधा दर्जन से अधिक अन्य ट्रैक्टर भी अवैध परिवहन में लगे हुए थे जिनमें से कुछ के चालक रेत खाली कर ट्रैक्टर ले भागे तो कुछ के चालक ने ट्राली छोड़कर इंजन सहित भागने में भलाई समझी। बिना चालक के छोड़े गए एक ट्रैक्टर और जेसीबी को किसी तरह कोतवाली लाया गया। पुलिस अभिरक्षा में दोनों वाहन खड़े कराए गए हैं। जेसीबी रामकिरण यादव की बताई गई है।
राजस्व अधिकारी ने बताया कि अग्रिम कार्रवाई हेतु मामला खनिज विभाग को प्रेषित किया जाएगा। दूसरी तरफ निरीक्षक रामखिलावन कुलार्य ने बताया कि मामले में खनिज अधिनियमों के तहत जो भी कार्रवाई होगी, वह सोमवार को की जाएगी।
इस मामले में एक बेहद महत्वपूर्ण बात यह भी है कि परिवहन विभाग ऐसे अवैध कार्यों में संलिप्त वाहनों पर काफी दरियादिल बना हुआ है। कलेक्टर अजीत वसंत ने बैठकों में साफ तौर पर स्पष्ट किया है कि कोई भी वाहन बिना नंबर का ना हो, वाहनों में नंबर प्लेट अनिवार्य रूप से लिखा जाना चाहिए और नाबालिक वाहन ना चलाएं। देखा गया है कि परिवहन विभाग के अधिकारी और उनका अमला अपने मतलब की आयमूलक कार्रवाई तक सीमित रहते हैं। ट्रैक्टरों सहित बिना नंबर वाले अन्य माल वाहनों, एक्स्ट्रा बॉडी ऊँचा कर रेत ढोते टीपरों पर किसी भी तरह की सख्ती देखने को नहीं मिली है, जबकि दफ्तर के सामने से ही गुजरते हैं। अगर परिवहन विभाग ईमानदारी से अभियान चलाए तो दर्जनों ट्रैक्टर बिना नंबर के मिल जाएंगे। इसके अलावा ट्रैक्टरों के जो चालक हैं अथवा रेत परिवहन या अन्य खनिज परिवहन सहित अन्य मालवाहनों को चलाने में नियोजित किए गए चालकों के लाइसेंस भी जांच के दायरे में होने चाहिए। 18 वर्ष हुआ नहीं कि इनका ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है, हैवी गाड़ी चलाने का लाइसेंस जारी कर देना आम बात बन गई है। शहर के भीतर- बाहर से तेज रफ्तार दौड़ते कुशल, अर्ध कुशल वाहन चालकों के हाथ से स्टेरिंग कब बेकाबू हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं। होनी-अनहोनी अपनी जगह पर है लेकिन परिवहन विभाग के अधिकारियों और मैदानी अमले का जो दायित्व है उसका भी सही ढंग से निर्वहन हो जाए तो काफी हद तक लगाम लग सकती है। वैसे, परिवहन अमला तो पुलिस और यातायात विभाग पर ही पूरा दारोमदार छोड़े बैठे हैं।
जिले में एक और महत्वपूर्ण विभाग पर्यावरण की रक्षा के लिए कार्यरत है। यहां क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण अधिकारी पदस्थ हैं और उनके पास अमला भी है लेकिन मजाल है कि वह कुछ अपवाद स्वरूप मामलों को छोड़कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के दूसरे मामलों में मौके पर दस्तक दिए हों। राखड़ परिवहन से होने वाले प्रदूषण पर कभी-कभार की कार्रवाई तो एक खानापूर्ति की तरह है जो पर्यावरण विभाग की मौजूदगी का आभास कराता है। लेकिन दूसरी तरफ जबकि इन दिनों प्रतिबंध लगा हुआ है तब नदियों की रक्षा, उसकी सुरक्षा और नदियों से रेत का अवैध दोहन करने वालों के खिलाफ संरक्षण अधिनियम के तहत किस तरह की कार्रवाई हो सकती है, किस तरह की सख्ती बरती जानी चाहिए, इन सब मामलों में पर्यावरण संरक्षण विभाग की भूमिका शून्य ही नजर आती है।
रेत व खनिज संसाधनों का अवैध दोहन, भंडारण, परिवहन के मामले में जब यह पुष्ट होता है कि वह नियम- कानून का उल्लंघन कर रहा है तो ऐसे लोगों पर एफआईआर क्यों नहीं कराई जाती? जैसे कि अभी जिसका जेसीबी जप्त हुआ है, वह अवैध खनन में वर्षों से लिप्त है। उसे इस बात की जानकारी है कि वर्तमान में प्रतिबंध लगा हुआ है और वह गैर कानूनी कार्य कर/करा रहा है। ट्रेक्टर मालिक सह चालक भी जानते-समझते हुए रेत माफियाओं के इशारे पर अवैध काम नदी में उतर कर कर रहे हैं। सिर्फ यह कि, वाहन छोड़कर चालक भाग निकला, इतना कहकर उसे जानबूझकर किए जाने वाले सोचे-समझे अपराध के दंड से पृथक कर देना कहां तक उचित है? चालक न सही वाहन के मालिक पर तो सख्त कार्रवाई बनती है, जो जानबूझकर गैर कानूनी और खनिज संसाधन की चोरी का अपराध कर रहा है। यहां यह भी बड़ा हास्यास्पद है कि पुलिस विभाग के अधिकारी अपनी-अपनी रुचि के अनुसार रेत चोरी के मामलों में कार्रवाई करते हैं।पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार में रेत चोरी के दो मामलों में नामजद एफआईआर थानों में दर्ज की गई। उम्मीद थी कि इस तरह की कार्रवाई आगे भी होने से खनिज चोरों को सबक मिलेगा लेकिन इसके बाद तो एफआईआर का चैप्टर ही बंद कर दिया गया। हाईकोर्ट सख्त है, सरकार भी निर्देश दे रही है लेकिन जहां अपराध है तो वहां कानून के जानकारों ने बचाव के रास्ते भी निकाले हैं। मजे की बात यह है कि ऐसे मामलों में अपराधी को दंड से बचाने के लिए उसके बचाव के रास्ते संबंधित अधिकारी पहले से ही तैयार करके रखते हैं तो भला माफियाओं का मनोबल कैसे ना बढ़े? चंद रुपये जुर्माना देकर फिर उसी धंधे में उतरकर सरकार को चूना लगाकर , प्राकृतिक व सरकारी सम्पदा को नुकसान पहुंचाकर लाखों कमा लिए तो क्या फर्क पड़ा?