नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की रिहाई वाले आदेश पर स्टे लगा दिया और उन्हें 4 हफ्ते में जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है। सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान लालकृष्ण आडवाणी का भी जिक्र हुआ।

दरअसल हाईकोर्ट ने कहा था कि पॉक्सो के तहत सरकारी कर्मचारी की परिभाषा में साफ तौर पर विधायकों को शामिल नहीं किया जा सकता। इस चुनौती देते हुए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और हाईकोर्ट के तर्क को कानूनी रूप से गलत बताया था। चुनौती का मुख्य आधार सुप्रीम कोर्ट के 1997 का ‘एलके आडवाणी बनाम CBI’ मामले का फैसले को बनाया गया था।

सीबीआई ने अपनी याचिका में कहा कि अगर विधायकों को भ्रष्टाचार जैसे अपराधों के लिए सरकारी कर्मचारी माना जा सकता है, तो बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में भी यही सिद्धांत समान या उससे ज्यादा सख्ती से लागू होना चाहिए। सीबीआई ने कहा कि POCSO के तहत सरकारी कर्मचारियों की परिभाषा से विधायकों को बाहर करने से कानून का मकसद ही खत्म हो जाएगा।

क्या है 1997 का आडवाणी केस?

CBI ने प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, 1988 के तहत मामले दर्ज किए थे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकारी फायदे के बदले राजनेताओं को अवैध फंड दिए गए थे। तब यह कानूनी मु्द्दा उठा था कि क्या चुने हुए प्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के मकसद से सरकारी कर्मचारी माना जा सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का जवाब हां था।

आज सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगाया। यह मामला 2017 का है, जिसमें उन्नाव की एक किशोरी ने कुलदीप सेंगर पर रेप का आरोप लगाया था। तब सेंगर बांगरमऊ सीट से विधायक थे।

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