बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 39 साल पुराने रिश्वतखोरी के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए बिल सहायक को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। यह मामला वर्ष 1981 का है, जब वित्त विभाग के बिल सहायक रामेश्वर प्रसाद अवधिया पर 100 रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगा था।

इस प्रकरण में रायपुर की निचली अदालत ने 9 दिसंबर 2004 को अवधिया को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी मानते हुए एक साल कैद और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

दरअसल, शिकायतकर्ता अशोक कुमार वर्मा ने सेवाकालीन बकाया बिल भुगतान को लेकर अवधिया से संपर्क किया था। आरोप था कि बिल पारित करने के लिए 100 रुपये रिश्वत की मांग की गई। लोकायुक्त ने ट्रैप कार्रवाई की योजना बनाई और शिकायतकर्ता को 50-50 रुपये के रासायनिक लगे नोट देकर भेजा। कार्रवाई के दौरान अवधिया को रंगे हाथों पकड़ लिया गया था।

मामला न्यायालय में पहुंचा और वर्षों तक विचाराधीन रहा। हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए जस्टिस बिभू दत्त गुरु की एकलपीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि वास्तव में आरोपी ने अवैध परितोषण की मांग की थी और उसे स्वीकार किया था। मौखिक, दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त नहीं पाए गए।

कोर्ट ने कहा कि जब अभियोजन अपने साक्ष्य भार को सिद्ध नहीं कर पाया, तो निचली अदालत का दोषसिद्धि आदेश टिकाऊ नहीं है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए सजा और दोषसिद्धि दोनों को रद्द कर दिया।

Leave a reply

Please enter your name here
Please enter your comment!